गॉड पार्टिकल (भाग – 2), God Particle ( part – 2 )

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ब्रह्मांड की संरचना और निर्माण में प्रयुक्त कणों का प्रकृति के अध्ययन के लिए समय – समय पर अनेक सिद्धांत प्रतिपादित किए गए है। इनमें सबसे अधिक प्रचलित “बिग बैंग थ्योरी” है, इस सिद्धांत के अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति एक महाविस्फोट “बिग बैंग” से हुई और तब से लगातार फैलता जा रहा है। प्रारंभ में ब्रह्मांड बहुत ज्यादा गर्म था, बाद में धीरे – धीरे ठंडा होता गया।

आधुनिक कण भौतिकी के अनुसार पदार्थ “क्वार्क व लेटरान” ( जैसे इलेक्ट्रान ) नाम के आधारभूत कणों से मिलकर बना है। इन कणों के द्रव्यमान के लिए जिम्मेदार कण को “हिग्स – बोसोन” (ईश्वरीय कण) के नाम से जाना जाता है।

हिग्स बोसोन की खोज के लिए “स्विट्ज़रलैंड” के “जेनेवा” शहर के नज़दीक मानव सभ्यता के इतिहास में अब तक की सबसे महंगी मशीन “लार्ज हैड्रन कोलाइडर (एल एच सी)” को लगाया गया है। एल एच सी पर विचार 1980 में किया गया। इस महामशीन को 1996 में मंजूरी मिल गई। इस मशीन को “सेंटर फॉर यूरोपियन रिसर्च इन न्यूक्लियर फिजिक्स (सर्न)” द्वारा तैयार किया गया। एल एच सी मशीन 27 किलोमीटर परिधि वाली एक वृन्ताकर सुरंग में स्थित है और यह लगभग 175 मीटर गहरी है। इस मशीन में उच्च ऊर्जा वाले प्रोट्रोनो (तकनिकी शब्दावली में प्रोट्रोन, न्यूट्रोंन एवं अन्य कुछ कणों को हेड्रान भी कहा जाता है)  से बनी किरण पुंज दो अलग – अलग विपरीत दिशाओं से आकर टकराती है। इस चक्कर से विभिन्न कणों का उत्सर्जन होता है।

हिग्स पार्टिकल इस प्रकार दिखाई दिया कि जब प्रोट्रोन पूरी तरह से खंडित हो गए तो छोटे – छोटे टुकड़ों से एक रास्ता बना “डिटेक्टर मैगनेट” ने अलग – अलग पार्टिकल्स की अलग – अलग तरीके की आड़ी – तिरछी रेखाएँ बना दी। इसकी पहली प्रोट्रोन टक्कर 2008 में हुई थी।

इस खोजे गए कण का भार 125.3 जी ईवी बताया गया है। भार नापने की यह इकाई “गीग इलेक्ट्रोन बोल्ट” है। इसका फायदा यह होगा कि 13.7 अरब वर्ष पहले ब्रह्मांड की उत्पत्ति कैसे हुई। माना जा रहा है कि नई खोज से ऊर्जा के नए स्त्रोत का पता लगाया जा सकेगा। अंतरिक्ष तकनीक को गति मिलेगी। नैनो तकनीक विकसित हो सकेगी और इंटरनेट की गति को बढ़ाने में मदद मिलेगी।

गॉड पार्टिकल से सम्बन्धित बातें एक नज़र में :- 

  1. गॉड पार्टिकल को हिग्स बोसोन भी कहा जाता है।
  2. इसकी परिकल्पना 1964 में हुई थी।
  3. हिग्स बोसोन में “बोसोन” की खोज का श्रेय भारतीय वैज्ञानिक सतेंद्र बोस को जाता है।
  4. इस कण की खोज एल एच सी पर हुई। जो विश्व की सबसे बड़ी मशीन है।
  5. एल एच सी (महामशीन) पर निर्माण 1998 में प्रारंभ हुआ।
  6. इसकी खोज से इंटरनेट की गति को बढ़,  नैनो तकनीक विकसित हो सकती है।

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